पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/९७

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रहीम-कवितावली। प्रौदा-स्वाधीनपतिका- मैं अरु मोर पिपरवा, जस जल-मीन । . बिछुरत तजत परनवाँ, रहत अधीन ॥ ७२ ॥ परकीया स्वाधीनपतिका- भौ जुग नयन चकोरवा, पित्र मुख चन्द । जानति है ति अपने, मोहि सुख-कन्द ॥ ७३ ॥ गणिका स्वाधीनपतिका- लै हीरन के हरवा, मोतिन माल । 1 मोहि रहत पहिरावत, बसि द्वै लाल ॥ ७४ ॥ ८-अभिसारिका । मुग्धा-अभिसारिका- • चली लवाइ नबेलिअहि, सखि सब संग । - जस हुलसत गो गोदवा, मत्त मतंग ॥ ७५ ॥ मध्या-अभिसारिका- पहिरे लाल अछुवा, तिथ गज-पाय । चढ़िक । नेह-हथियवा, हुलसत जाय ॥ ७६॥ प्रौदा-अभिसारिका- चली रईनि अधिरित्रा, साहस गादि । पाँयन फेरि ककरिश्रा, डारेसि कादि ॥ ७७ ॥ परकीया-कृष्णाभिसारिका- - नील मनिन के हरवा, नील सिंगार। किए रइनिअधिपरिश्रा, धनि अभिसार ॥ ७ ॥ ७२-१-प्राण । ७७-१-रात्रि, २-आधी के करीब 2