पृष्ठ:राजविलास.djvu/१०

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३ राजबिलास। जीपए ॥ अनवट अनोपंम बीछिया प्रति धुनि मनोहर धारनी । अद्भुत अनूप मराल आसनि जयति जय जमतारनी ॥ १३ ॥ __ झमकंति झरि नाद रुण झुण पाय पायल पहिरना। कमनीय क्षुद्रावली किंकिनि प्रवर पय प्राभूषना ॥ कलधौत कूरम समय मन मा पीड़ प्रहारनी। अद्भुत अनूप भराल आसनि जयति जय जगतारनी ॥ १४ ॥ कदली सुखंभ अधो कि करि कर जंघ जुग बर जानिये । शुचि शुभग सार नितंब प्रस्थल बाघ कटि बापानिये ॥ वापिका नाभि गंभीर सुवणित महा रिपु दल मारनी । अद्भुत अनूप मराल आसनि जयति जय जगहारनी ॥ १५ ॥ चरनालि कटि तट लाल चरना पवर अरू पट. कूलयं । मेषला कंचन रतन मंडित देव दूष दुकलयं ॥ दीपती दुति जनु भानु द्वादस अघ तिमर अप- हारनी । अतुत अनूप मराल मारूनि जथ लिद जय जगतारनी ॥ १६ ॥ तिमि तुल्ल कुखिंस मध्य विवानिय उरज उभय अनोपमा । किधों नालि कि कनक कुभ सुकुभि- कुंभ मुऊपा। कंचुकी जरकस कसिय कोमल आदि