पृष्ठ:राजविलास.djvu/१०४

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राजविलांस। उनमत्त करत अग्गंग अनाज । बहु वेग जान पावै न बाज ॥ ढलकन्त पुठि उज्जल स हाल । बर बिबिध वर्ण नेजा बिसाल ॥ ६ ॥ बोलन्त चलत बन्दी बिरुद्द । दीपन्त धवल रुचि शुचि विरद्द ॥ गुरु गाढ गेंद गिरिवर गुमान । पढ़ि धत्त धत्त मुख पीलवान ॥ ७ ॥ एराक आरबी अश्व ऐन । सोभन्त श्रवन सुन्दर सुनैन ॥ काश्मीर देश कांबोज कछि । पय पन्थ पौन पथ रूप लछि ॥८॥ बंगाल जात के बाजि राज । काबिल सु केक हय भूप काज ॥ खंधार उतन केहि खुरासान । वपु ऊंच तेज बर बिबिध बान ॥६॥ हय हीस करत के जाति हंस । कविले सुकि हाड़े भोर बंस ॥ किरडीए खुरहडे केसु रत्त । पीलडे केकली लेप वित्त ॥ १० ॥ चच्चल सुवेग रहबाल चाल। येइ थेइ तान् नच्चन्त थाल ॥ गुथिय सुजान कर केस बाल । बनि कन्ध वक्र सोभा विसाल ॥ ११ ॥ साकति सुबर्ण साजे समुख । लीने सु सत्य हय एक लख ॥ रवि रथ तुरङ्ग सम ते सरूप । भनि विपुल पुठि तिन चढ़ भूप ॥ १२ ॥ ___पयदल सु सज्जि पारष प्रधान । जंघायु जङ्ग