पृष्ठ:राजविलास.djvu/१०५

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राजविलास। जीतन जवान ॥ भट विकट भीम भारत भुजाल । साधर्मि सूर निज शत्रु साल ॥ १३ ॥ निलवट सनर रत्ते सु नैंन । गय थाट घाट अप घट गिनन ॥ धमकन्ति धरनि चल्लत धमक्क । धर हरत कोट जिन सबर धक्क ॥ १४ ॥ ____बंकी सु पाघ वर भृकुटि बंक । निर्भय निरोग नाहर निसंक ॥ शिरटोप सज्जि तनु वान संच । प्रगटे सु बन्धि हथियार पंच ॥ १५ ॥ कटि कसे कटारी अरु कृपान । बंदूक ढाल को- दण्ड बान ॥ कमनीय कुन्त कर तोन पुठि । मारन्त शद्द सुनि सबल मुठि ॥ १६ ॥ गल्हार करत गज्जन्त गैन । बोलंत बंदि बहु विरुद बैन ॥ मुररन्त मुंछ गुरु भरिय मान । गिनि कोन कहै पायक सु गान ॥ १७॥ बहु भूप थट्ट दल मध्य बीर । सुरपति समान शोभा सरीर ॥ श्रीराज सिंह राणा सरूप । गजराज ढाल आसन अनूप ॥ १८ ॥ शीशे सु छत्र बाजन्त सार । चामर ढलंत उज्जल स चारु ॥ घन सजल सरिस दल घाघरदृ । भाषन्त विरुद बर बन्दि भट्ट ॥ १८ ॥ कालंकि राय केदार कत्थ । अस कत्ति राय थप्पत समच्छ ॥ हिन्दू सु राय रखन सुहद्द। मुगलान राय मोरन मरद्द ॥ २० ॥