पृष्ठ:राजविलास.djvu/११०

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राजबिलास।

राजेश राण जगतेश सुत पुन्यवन्त मेवार पति॥३८ इति श्री मन्मान कवि विरचिते श्रीराजविलास शास्त्रे राँणा श्रीराज सिंह जी कस्य दिग्जय वर्णन नाम षष्टम विलासः संपूर्णः ॥ ६ ॥ ॥दोहा॥ मारु बारि महि मंडले, रूप नगर बहु रूप । राज करै तहं रठ बर, मानसिंह मह भूप ॥ १॥ सो नृप औरंग साहि कौ, अकुली बल उमराव । सूर बीर सच्चौ सुभट, न पर धरहि दाव ॥ २ ॥ भगिनी तस घर एक भल, सुभ लच्छिनी सयान । बेष बाल पोरस बरस, नख सिख रूप निधान ॥३॥ रमा रूप के रम्भ रति, गौरीसै गुन ग्राम ॥ रूपसिंह राठौर की, सुता सु लक्षन धाम ॥ ४ ॥ ॥ कवित्त ॥ धरनि प्रगट मरू धरा बसें तहं रूप नगर वर । मान सिंह तहं महिप रज्ज रज्जन्त र बर ॥ बहनि तास गृह प्रवर रमा रूपें कि रम्भ रति । रूपसिंह पुत्ती स गात कञ्चन गयन्द गति ॥ बोलन्त मधुर धुनि प्रिक बयन निशिपति मानन मृग नयन । चउसठ कलान कुंवरी चतुर मन मोहन मन्दिर मयन ॥३॥