पृष्ठ:राजविलास.djvu/११२

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राजबिलास। मयगल मोतिन की माला, मनि मण्डित झाकझमाला । चाकी चामीकर चंगी, रतनाली छबि बहुरंगी ॥ १३ ॥ अष्टादश सर अभिरामं, नव सर षट सर किहि नामं । हारावलि मण्डित हेमं, पहिरी बर कण्ठहि पेमं ॥ १४ ॥ ___ उर उरज उभय अधिकाई, श्री फल उपमा सम भाई। लीलक कंचुकी निहारी, भुजदण्ड प्रलम्ब सभारी ॥ १५ ॥ ___बर करन कनक मय बन्धं, बिलसत दुति बाजू बन्धं । चूरो कंकन सो चहिये, गजरा पोचिय गुन गहिये ॥ १६ ॥ मुद्रिय अंगुरि मन मानी, कंचन नग जरित कहानी । महदी मय बेलिसु मंडी, तिन पानि सोभ बहु तंडी ॥ १७॥ मच्छोदरि तिवलिय मष्भे, वापी सम नाभि सु बुष्भे । कटि मेषल मनि कुन्दन की, तरनिय सी सोभा तिनकी ॥ १८ ॥ चरना रङ्गित बहु चोलं, पहिरन बर पीत पटोलं । वर समर गेह सुचि बिम्ब, नीके गुरु युगल नितम्बं ॥ १८॥ ____ करि कर जंघा जुग कन्तं, झझरि पय धुनि झम- कन्तं । पाइल क्षुद्राबलिरंगं, आभूषन ओर उपगं॥२०॥