पृष्ठ:राजविलास.djvu/१२२

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११५ राजबिलास । कर मुकलावनि करत होत उच्छाह अनन्तह ॥ गावत सूहव गीत नारि बहु मिलि मृग नैनिय । हरषित चित्त हसन्ति परस्पर करत सु सैनिय ॥ उचरन्त मुत्ति कंचन अधिक घन जाचक जन घर भरिय । श्री राज सिह राना सबल, बिश्व सकल जस बिस्तरिय ॥ ८४ ॥ छन्द पद्धरिय । बिछुरिय सयल संसार बत्त, ए राज सिंह राना उमत्त । मिझयौ सु जिनहि पतिसाह मांनि, परनी यु रूप पुत्ती प्रधान ॥ ८५ ॥ दाइजा सास रठोर देत, सचि मानसिंह राजा सहेत । बारुन सु छहों ऋतु मद बहन्त, पिखन्त रूप पर दल पुलन्त ॥ ६ ॥ ___मंडै न ओरि करि भाइ मुख, भलियहि पेखि जिन प्यास भूख । सुण्डाल किधों अंजन सुमेर, ढाहन सु बङ्क गढ़ करन ढेर ॥ ८७ ॥ सुभ दरस जास सेना सिंगार, हरषन्त युद्ध मन्नै न हार । ठनकन्त कनक घंटा ठनक्क, घमकन्त चरन घुघरू घनंक ॥८॥ शृंखला लोह लंगर सभार, आने न चित्त अंकुस प्रहार । सिन्दूर चँवर बर सीस सोह, पट कूल झूल पुठहिं प्ररोह ॥