पृष्ठ:राजविलास.djvu/१३

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६ राजशिलाम । ठिय वपु सरं ॥ किं अवर उपमा कहय लनु कवि शत्रु जय संहारनी। अद्धत अनप मराल भासनि जयति जय जगणी ॥ २६ ॥ सुविशाल भाल कि अष्टमी सलि चरचि केसर चंदना । बिंदुली लाल सिंदूर सुरक्षित वर्ण पुष्प सुदंदना ॥ अनि तिलक जटित जराउ ऊपित सकल काम सुधारनी । अद्भुत अनूपमराल आसनि जयति जय जगतारनी ॥ २७ ॥ शिर भाल संधि सुसीसफूलह सहन किरन समा- नयं । राषडीनिरपल चित्त रंजति वेणि व्याल क्यानयं॥ मोतिन सुमांग जवादि मंडित अधम लोक उधारनी । अद्भुत अनूप मराल प्रासनिजयतिजयजगतारनी ॥२८॥ अंशुक कि इंदु मयूष उज्जल झीन अति दुति- झलमलं । सुरवरहिं निम्नित सरश सुर नित परम पावन पेसलं ॥ मन रंग जढ़ति महामाई विपति कद विदारनी । अद्धत अनूप मराल सनि जयति जय जगतारनी ॥ २६ ॥ चंबेलि जूही जाइ चंपक कुंद करणी केवरा।। मचकुंद मालति दवन मुग्गर चारु कंठहिं चौसरा ॥ तंबोल मुख महकत त्रिपुरा ब्रह्मरूप विचारनी । अद्भुत अनूप मराल आसनिजयतिजयजगतारनी ॥ ३० ॥