पृष्ठ:राजविलास.djvu/१३४

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राजविलास । १२७ जगहितकर जगजनक निखिल जग दैत्य निकंदन केशव श्रीपति कृष्ण मदनमोहन मधुसूदन । माधव महित मुरारि मान हरिवंश सु मंडन ॥ गिरिधर मुकुन्द गोबिन्द गनि गोवर्द्धनधर गरुर- ध्वज । गोपाल गदाधर शंखधर चक्रपानि चौबाहु बृज ॥ ५३ ॥ वासुदेप बिधु विष्णु वेष बावन बलि बन्धन बीठल कुंजबिहारि सु ब्रज बृन्दाबन भूषन ॥ बन्सीधर विख्यात विश्व रूपक विश्वम्भर । बनमाली बैकुंठनाथ वसुपाल बेद पर । बाराह बृषा कपि बिस्व बल विहित त्रिबिक्रम बिमल मति । बसुदेव नन्द वारिद बरन बारन बर बारुन विपति ॥ ५४ ॥ पुरुषोत्तत सु पुरान पुरुष पारग परमेशर । पदनाम पूरन प्रताप पावन पीतांबर ॥ पुण्डरीक लोचन प्रमान पावक मुख पीवन । श्रीवछ लंछन शौरि श्याम सुन्दर रु श्याम घन । अहिसेन अधोक्षज अचुत मज अघ बक बच्छ अरिष्ट अरि । मह उदधि मथनरु अनन्त मति हत कैटभ रखिकेश हरि ॥ ५५ ॥ कमल नयन कन्सारि केशिभंजन कमलापति । कुंजन सानिधिकार दुष्ट दलमलन दलनदिति ॥