पृष्ठ:राजविलास.djvu/१५

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राजबिलाम । कवित्त। सुभ संवत दस सात बरस चौंतीस बधाई । उत्तम मास अषाढ़ दिवस सत्तमि सुखदाई ॥ बिमल पाख बुधवार सिद्धि बर जोग संपतौ । हरषकार रिषि हस्त रासि कन्या ससि रत्तौ ॥ तिन द्यौस मात त्रिपुरा सुतवि कीनौ ग्रंथ मंडानकवि । श्रीराजसिंह महाराण को 'रचि यहिं जस जौं चंद रवि ॥ ३८ ॥ अति पावस उल्हरिय करिय कण्ठल धुरकाली। आसा बंधि असाढ़ हरष करसणि कर हाली । बद्दल- दल वित्थुरिय चारु चपला चमकेतह । गज्ज घोष गम्भीर मोर गिरि सोर मचंतह ॥ पादीत सोम छवि श्रावरिय घण आयौ घमसाण घण । बरसंत बुद बड़ बड़ बिमल जलधर वल्लभ जगत जण ॥ ३८ ॥ पद्धरी। - आसाढ़ मास आयो अनूप, रचि उत्तर कंठल श्यामरूप । बद्दल चढंत बज्जत सुवाइ, उल्हरिय सुपावस समय पाइ॥४०॥ ____ चहुँ ओर जोर चपला चमक्य, झल हलत तेज

रवि सम झमक्व । घुरहरत घोर घण गुहिर घोष,

पावंत सुनिव संसार पोष ॥ ४१ ॥ केकी करंत गिरवर किंगार, सजि पंधरा छत्र नाचंत सार। महि मिलिय सयल सिरि मे अशा माल, बरसंत बुद बड़ बड़ विशाल ॥ ४२ ॥ २॥