पृष्ठ:राजविलास.djvu/१५९

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राजविलास । रसना रदंत महमद रसूल, ईदह निवाज रोजा अनल । बाराह छडि गो सत्य बैर, सुदि पष्ष वीय बटै सुषेर ॥ २ ॥ गरवर वदंत पारसि गुमान, प्रासाद तित्थ पंडे पुरान । महकाल यान मह जीव मंड, मोरंग साहि पालम अदंड ॥ ३०॥ ॥दोहा॥ करे सोइ असपति कुरस, सब दिन हिंदू सत्थि । जिन उज्जैनी जंग जुरि, लुठिय असुरनि लुत्थि३१॥ फुनि हुरंम धवला पुरहि, कर लुट्टी कमधज्ज । महाराय जसवंत ने, कोटिक कनकह कज्ज ॥३२॥ में मुख न मिले साहि सों, कूर राय कमज्ज । सिंह रूप जसवतसिंह, जोधपुरा युग रज्ज ॥३३॥ सो दुख सल्ल साहि उर, गस धरि बढ़ गैर । मुर धरपति महाराय सों, वहै अहे निसि वैर ३४।। मुंह मिट्ठो रुटो सुमन, पारधि ज्यों सुर पुगि। असपति प्रोरंग साहियों, कमधज हनन कुरंगि ३॥ ॥ कवित्त ॥ अरवे ओरंगसाहि सुनहु जसवंत सिंह नप । महियल तुम महाराय तरिण ज्यों प्रगट रद्यतप ॥ अव हम मा असपती भये तप पुब्ब भाग बल । तुम आवहु हम सेव अधिक तो देहु अप्प इल ॥ है विधि रसूल अब तुम रु हम बहुरि कबहु कर नह बिरस । नन लषे कोइ इह निपुन हू गहिय साहि इहि भंति गस ॥ ३६॥