पृष्ठ:राजविलास.djvu/१८६

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राजबिलास। १७९ रबि बंशी महाराण राण राहप हरि रूपह । श्री दिनकर सक बंध न्याउ नरपाल अनूपह ॥ कृतष उंच जस करन पुन्य पालह प्रथवीपति । पीथल राण प्रचंड भाण सी राण देव भति ॥ भल भीम अजै सी लषम सी अर सी राण महा अडर । सुलतान गहन मोषन सकल रोण एह राजेश बर ॥ १८४ ॥ राण हमीर सुरीति राण खेतल अभंग रिन । लाषन सी बहुलील राण मोकल उदार मन ॥ कुंभ राण जग कित्ति राणं कुल रूप परय मल । सबल राण संग्राम उदय नित उदय राण इल ॥ कायम प्रताप अमरह करण जगत सिंह जग जोर बर । सुलतान गहन मोषन सकल राण एह राजेश बर ॥ १८५ ॥ - रामचंद राजेन्द बंधु लच्छन सु बीर बर। कृष्ण देव रिपु काल कंस प्रासुर बिधंस कर ॥ कैरव कण कण करण जंग जोधार जुधिष्ठिर । अर्जुन भीम अभंग सूर सहदेव अचल सर ॥ नरनाह बिरुद पंड- वन कुल असुर सँहारन बिरुद इन । राजेश राण जंग- तेश सुन्न पुहवि रखी सो क्षत्रियन ॥ १८६ ॥ तुम हिन्दूपति प्रगट तुमहिं दिनकर हिन्दूकुल। तुम हिन्दू उद्धरन बिरुद सरनागय बत्सल॥तुम करना कर सुकृत तुम सु कलियुग दुख कप्पन । अबलनि तुम प्राधार तुम सु असुरेश उथप्पन ॥ इन धर अनादि