पृष्ठ:राजविलास.djvu/१८९

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१८२ राजविलास । रिय धर लुट्टि तकि तुरकानी तोरों ॥षनि नंषा पंधार बेगि खुरसान विहंडों। परजारों पट्टनहि देश भक्खर सब दंडों । सुबिहान साहि ओरंग को गज समेत जीवत गहों ॥ है राजराण तो हिन्दुपति कहा अधिक तुम से कहों ॥ १७ ॥ बिस्तारों बर बेद पुहवि रक्खों सुपुरानह । काजी सत्यक ते ब करों सब ठार कुरानह ॥ चकता करों अचून थान निज दिल्ली थप्पो । रक्खों हिन्दू रीति आसुरी रीति उथप्पों ॥ ईश्वर प्रसाद बर उद्धरों म्लेछ तित्थ पंडों सु महि । रक्खों सु सकल रहौर कों कोपि राण राजेस कहि ॥ १८८ ॥ ____ मीर मलिक मस्संद भूत सम तेह भयंकर । घन घेरे रिपु घल्लि चुनिग चुनि हनों निशाचर ॥ युग्गिनि रख सज्जरक बीर पंखिनि बेतालह । देत भूत भष देहु करों असपति षय कालह ॥ रक्खों सु हिन्दुपन बीर रस बसुमति रक्खों अप्प बल। तो राज राण जगतेश सुभ षग्ग प्रान जित्तों यु षल ॥ १८ ॥ ॥ दोहा॥ बल बँधाई सुबिशेष तें, दल लिषि अनुगहि दीन । बेगि बुलाए रहवर, हिन्दूपति सु प्रबीन ॥ २०० ॥ रंग बढ़ सब रतुवर, ले निय परियन लच्छि। मेद पाट पति से मिले, अब खेसारी मिच्छिा२०१५