पृष्ठ:राजविलास.djvu/१९०

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राजविलास । ॥ कवित्त ॥ इभ गरुये इगबीस दोय दस सहस तुरंगम । कोटिक रूप रु कनक पवर बहु रथ पवनंगम ॥ सतक जंत्रि भर शस्त्र करभ युग सहस मत्त कल । कलहंत- नहि सकज्ज सहस पण बीस पयद्दल ॥ इतनै सु सत्थ परिकर अमित महाराइ सुत मज्झ बर । राजेश राण से रहवर आइ मिले असुरेश डर ॥२०॥ गरुन गात गजराज सकल शृंगार सुसोभित । कनक तोल तिन मोल अश्व एकादश उप्पित ॥ षग्ग एक खुरसान कनक नग जरित कटारह । इक हीरा सु अमोल दाम दस सहस दिनारह ॥ कामधज्ज सकल कर जोरि करि प्रभु नमि मुक्किय पेस- कस । श्री राज राण जगतेश के रक्खी हित धरि रंग रस ॥ २०३॥ ॥दोहा॥ सबही सनमाने सुभट, बर बैठक सु बताइ । बीरा और कपूर बर, में कर अप्पै साइ ॥ २०४ ॥ परच कद्य सुबिचारि षिति, दीने द्वादश ग्राम । नगर कैल वासो निरषि, अवनि सकल अभिराम॥२०॥ किहि मुक्ताफल माल किहि, हय गय गांउ सहेत । रीझि राण राजेश बर दिन २ सुभटन देत ॥२०६ ॥ इति श्रीमन्मानकबिबिरचिते श्रीराजबिलाम शास्त्र महाराणा श्रीराजसिंह जी का शरणागत बिजय पंजर बिरुद बर्णनं नाम अनेक मुमति प्रकाशः नवमा विलासः ॥९॥