पृष्ठ:राजविलास.djvu/२०१

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१९४ राजविलास । रजवट्ट रूप सबलेश राव । चहुवान चंड चित लरन चाव ॥ झाला नरेंद सद्दे जुझार । कहि चंद्र- सेन जमु अचल कार ॥ ५८ ॥ केसरी सिंघ गवत सु कित्ति । जसु कुंवर गंग मह जंग जित्ति ॥ झनकंत पग्ग झाला मुजैत । दिल्ली- स गहन जो दाव देत ॥ ६० ॥ गढ़ पति पँवार दाता दुझल । बर बीर राव भनि बैरि सल्ल ॥ महसिंघ बंक रावत उमत्त । चबि- ये सु चोंड हर चंड चित्त ॥ ६१ ॥ रन अचल सुरावत रतन सेन । फंदेस रिपुन ज्यों फंदि एन ॥ सामलह दास कमधज्ज क्रूर । नर नाह बिरुद जिन मुक्ख नूर ॥ ६ ॥ रावत रढाल रिन मान सिंघ। जित्तन सुजंग भुज सबल जंघ ॥ केसरी सिंघ चहुवान राव । घन घटे मिच्छि जिन षग्ग घाव ॥ ३ ॥ लीयें सचोंड हर नीति लद्य ॥ केसरी सिंघ रावत सकद्य ॥ महुकम सिंघ सगता सुभास । राठौर राय बर दुर्ग दास ॥ ६४ ॥ सोनिंग देव सामंत सूर । चालुक्क राव बिक्रम बिरूर ॥ रावत रुषमांगद सुभट रूप । जसवंत सिंघ झाला सु भूप ॥ ६५ ॥ गोपी सुनाह राठौर राइ । लहि समर समय