पृष्ठ:राजविलास.djvu/२०६

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१९ राजविलास। मान सिंह रावत सुमन्त चांडावत सुन्दर ॥ चाहु- वान चतुरंग राव केहरि रिन केहरि । रावत केहरि रूप चंड चोंडावत उच्चरि ॥ राषत रुषमांगद बीर रस सोलंकी बिक्रम सु ध्रुव । नृप दुर्गदास मो- निंग सम सकल रतुवर सत्य हुव ॥ ४ ॥ युग झाला जसवंत गोप रहोर जैत कर । मोहित गिरवर प्रगट बघत बल बषत सीह घर ॥ रतन सेन षीची मु बीर कन्हा सगतावत । अबू मलिक अजेज डोड महासिंह सुहावत ॥ गढ़ पती महेजा अमर गिनि झाला नृप बर सिंघि झिलि । चढ़ि चले सज्जि चतुरंग चमु मनो उदधि सुरसरित मिलि ॥ ५ ॥ ॥दोहा॥ मनो उदधि सुरसरित मिलि गुरु लहु अगिनत भूप। सत्य राण राजेश के चढ़े बीर रस चूप ॥ ६ ॥ देवी पानिय देव गिरि, पंच कोश सुप्रमान । प्रथम मुकाम तहां प्रवर, मंडि महा मंडान ॥ ८ ॥ सोर भटक अरु सेन सुर गिरिवर अंबर गाज। अवनन सद्द सुन्यो परे अरि दल बढ़त अवाज ॥८॥ प्रथम मुकामहिं हिन्दुपति मिले आइ मेवासि । पानोरा मेरह पुरा जूरापुरा जवासि ॥ ८ ॥ सजि पुलिन्द सब पल्लि पति, सहज पचासक सत्य ।