पृष्ठ:राजविलास.djvu/२१८

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राजधिलास । कपूर बहुत चित हित बिस्तारिय ॥ रिन रुषमांगद रावत्त को उदयभान अत्यो कुंवर । चहुवान बीर रस चौगुने राण कहत राजेश वर ॥ २३ ॥ इति श्रीमन्मान कवि विरचिते श्री राजविलास शास्त्र उदयपुर स्थान के कुंवर उदय- भानकृत द्वितीय युद्ध वर्णनं नाम द्वादशमो विलासः ॥१२॥ ॥दोहा॥ अंगज साहि मोरंग का, अकबर साहि अमान । धस्यो पहारनि मध्य धर, रिन जित्तन महारान ॥१॥ बाजी सह बत्तीस से, नर केइ नवाब । नारि गार आराब गुर, सजि दल चढ़यो सिताब ॥२॥ हरवल अल्लि हुसेन हुन्न, पक्को पंच हजार । कलह कूर कंकाल कर, रढ छंडे नन रारि ॥ ३ ॥ झंड रुप्पि झारोल यह, द्वादश काश प्रमान । नेनबारा गिरिवर प्रगट, सुभट थट्ट महाराण ॥ ४ ॥ निमुनिबत्त हिन्दू नृपति, सामंतनि सनमान । पठये प्रासुरि सेन पर, जंगहि भीषम जान ॥ ५॥ ॥कवित्त ॥ 'तिनहि बर तुरंत बीर बिफुरंत षिवंतह । तरित जानि तटकंत बिमल कलिकत बधंतह ॥ महा सिंघ मुंछाल राज रक्खन बड़ रावत । रतन सीह गुरु रोस चढ रावत चांडावत ॥ चहुवांन राव फुनि सजि