पृष्ठ:राजविलास.djvu/२२७

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२२० राजविलास। मीर बड़ २ मुगल उछरि २ उभ्भरि उररि । मचि करल कह करि जूह मधि गंग जंग मंड्यो सुपरि ॥ ११ ॥ छन्द बिजुमाता । ____ गरज्जि कुंभर गंग, रोके करि जंग रंग । अंबर उभारे तेग, बाहत पवन बेग ॥ १२ ॥ तु रिपु तुंड मुड, बारुण करे बिहंड । लर यरें परें लुत्यि, अंनो अन्य सं मालुत्थि ॥ १३ ॥ श्राराब छुट्टै अछेह, मानों गज्जे भद्दो मेह । धर गिरि धुआं धोर, उठे बीर चहूं ओर ॥ १४ ॥ किलकि २ केक, तुरकनि झारे तेक । लुबि झुबि ललकारि, हक्क बक्क मारि मारि ॥ १५ ॥ उछरै उत्तंग श्रोन, छिछि भिंलि धप्पी छोनि । टट्टर बहें गुरज्ज, प्रथक उडै पुरज्ज ॥ १६ ॥ सट्टे खुट्टे तुडे सत्य, लग्गे योधालत्यो बत्य । धा किल्ले उठिल्ले धाइ, किन्ने छिन्ने भिन्ने काइ ॥ १७ ॥ उरर देते उप्पट, झाक बज्ज झट्टो झट्ट । खुप्प- रि षनके खग्ग, अरि भग्गे अग्गो अग्ग ॥ १८ ॥ कबिल नचे कमंध, छिछटें उछट्टे बंध । घाइन छके घुमंत, जनों दंती दुरदंत ॥ १८ ॥ परिग सुदंति पंति, भरनि पहार भत्ति । छायो गेंन रेनु छाय, हहरे करें के हाइ ॥ २० ॥ कायर भगे कुरंग, समरि सुगेह संम | सम्हे भिरे सूर सर, चंबक वहक्क तूर ॥ २१ ॥