पृष्ठ:राजविलास.djvu/२३०

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राजविलास । २२३ भट किसोर उझि गोर ध्रटकि गरु भारि धरं धरि ॥ खरहरि शिहरि सु श्रृंग धरणि धर हरि परिकंधरि । गज्जि गोम लगि व्योम बुन्द झर बरषत गोरिय ॥ अधिक गाज आगाज झमकि बिद्युत पग जोरिय ॥ बजि डुझ गुझ आयुध बिषम अति झैझोरिय तनु सुतरु । भारथ उमंडि भद्दव सुभर कुंभर गंग झुझत कहर३४ ____ रुण्ड मुण्ड ररबरत परत धर पर हय बर पुर । तंग भंग तरफरत ससत सरफरत चरन कर । सिंधुर दर बर सबर करर बज्जत तनु पंजर। हर बर पर भर होत समर सज्जे भर सर भर ॥ झरहरत अरिन शिर रुहिर झर बजि गुरुज्ज गुरु परि बिहर । च्वै चले चेल रंग चोल ज्यों चलि प्रबाह चच्चर सुचिर ॥ ३५ ॥ भभकि भसुण्ड बिहंड झरिय करि संड उदंडह । उछरत परत उतंग जानि अजगर नहि जझर ॥ कटि सनाह परवरनि कवच कटकंत घग्ग झट । तुहि सत्य लगि बत्थ लुत्थि भालुत्य लट्ट पट ॥ फरफरत गगन थट गिद्धिनिय चिल्ह चंचु जनु कुंत फर ॥ कर चरन रु मत्थय भासुरनि गहत उड़त अंबर अधर ॥ ३६ ॥ परे मुगल सय पंच पंच सय परे पठानह ॥ शेष जादे सत्त से सैद इक सहस प्रमानह ॥ लोदि वलोचि अलेष परे सत्यर सरवानी । गक्खरीन को गिनय भूरि भंभर भर भानिय ॥ रूमी रुहिल उजबक असुर परे करंक करक परि ॥ फुलि भगी फोज पतिसाहि की