पृष्ठ:राजविलास.djvu/२३३

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२२६ राजविलास । थान थानह सुथिर बिथुरि प्रजा डुल्लत अथिर । प्रज- रंत नेर घरहर सुपरि जहँ तहँ मंनिय जोर डर ॥८॥ उजरि अहमदाबाद पीर पट्टन ससंक परि । भायत परहरिय मून मूरति धन संहरि ॥ जूनागढ़ जंजरे कच्छ कलकलि सुमंनि डर । गोर सिंधु सोबीर भूमि बहु भई उझंखर । मचि हक्क धक्क चहुं चक्क मधि श्राप आप भय बढ़िय उर । चढ़ि भीमराण राजेश को प्रायो के पायो कुंवर ॥ १० ॥ सुबच सुभग सुंदरिय दुरिय गिरि खरिय ससं- किय । सालंकरिय सुबेस चित्रनिय चित्र कलंकिय ॥ नव योबन सोबन सुबान मानिनि मृगनैनिय । रूप रंभ प्रारंभ दरस देणे सुख देनिय ॥ पयतन प्रवाल पल्लव सुपय सत्थन को सत्यी सुबिय । बहु भीमसेन कूवर सुभय डोलत बन धन शत्रु तिय ॥ ११ ॥ छन्द पद्धरी। सजि भीमसेन सेना बिशेश । दहबट्ट करन गुज्जर सुदेश ॥ दल बिंटि प्रथम ईडर दुरंग । भट बिकट जानि चंदन भुजंग ॥ १२ ॥ गढ़ तोरि तोरि गट्टे कपाट । थरहरिय यान असुरान थाट॥ नट्ठो सु सैद हासा नवाब । गढ़ छंडि छडि किल्ला सिताब,॥ १३ ॥ रलतलिय प्रजा बहुबरिय रोरि । डर मंनि