पृष्ठ:राजविलास.djvu/२३४

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राजविलास । २२७ जात बन गहन दौरि ॥ बनिता धपंत लहु नंषि बाल । भूषन पतंत पिरि मुत्तिमाल ॥ १४ ॥ तजि न्हाण बस्त्र इक तनु लपेट । चित चौंकि जात दीने चपेट ॥ ब्याकुलिय इक अधगुथि बेनि । भरि फाल जात ज्यों जात एनि ॥ १५ ॥ निय निय सुकज्ज छंडे निनार । चलचलिय छलक भय भीत भार ॥ को गहय सार कप्पर किरान । नग हेम रूप बदरा निदान ॥ १६ ॥ भूषन जराउ बहु रूच भंति । जहँ तहँ सुगड्डि धन लोक जंति ॥ जरकस सज्योति मुषमल अमोल ॥ सिकलात सूप तनु सुष पटोल ॥ मृद तूल मसद्यर बिबिधि रंग । मिश्रू दुमास चीनी सुचंग ॥ १७ ॥ षीरोदक अतलस सरस ल्हाइ । बुलबुल-चसंम मनु सुषद स्याइ ॥ पामरी पीत अम्बर दुपट्ट । साहि- बी पाट अरु हीर पट्ट ॥ १८ ॥ भैरव भरुत्थि मलमल सुधोत । महमदि बीर सेला सुपोत ॥ सिंदली झून सूसी सुपेद ।खासा प्रदान टुकरी सुभेद ॥ १८ ॥ श्रीसाष सालु इक पट सकोर । चोतार भार तनु पंच तोर ॥ बहु बिधि सुबस्त्र छंडे बजाज । भग्गे सभीति हटश्रेणि त्याज ॥ २० ॥ घत खंड तेल: सक्कर सभोर। अति खास अन्न