पृष्ठ:राजविलास.djvu/२४

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राजबिलास। मंडावरा मैदानयं, गढ गागरोनि गुमानयं । दौलताबाद सुदेषयौ, पुहवी सु पूना पेषयौ ॥ १० ॥ हिंसारगढ़ हरणौरयं, सोवर्ण गिरि 'सच्चौरयं । गढ देव ईडर गौरवं, बैराट बंधू बौरवं ॥ ११ ॥ कहि कंगुरा कल्यानियं, ठिल्ला पहार सु ठानियं। सुनियै शिवाना सारका, महि मध्य मंडल मारका १२१ ___ तारागनं त्रिकुटा चलं, नाशक्य व्यंबक कुंडलं.। यों कोट दुर्ग अनेकयं, बाषानियें सु विवेकयं ॥ १३ ॥ इन चित्रकोट सु उप्पम, इल दुर्गकोन अनोपमें। इन ओर कोटहिं अंतरं, पति नृत्य जानि पटंतरं ॥१४॥ इन मंड आदि न श्रावही, पर्यन्त पार न पावही । इह देव अंसी अक्खिये, पढ़ि मान बोल परक्खिये ॥ १५ ॥ दोहा। चित्रकोट चित्रांगदे, भारी कुल महिपाल । गढ़ मंड्यौ अवलोकि गिरि, देवंतीदा ढाल ॥ १६ ॥ संगहि लिय सीसौदीये, दुर्ग एह रिषि दान । बापा रावर बीरबर, बसुमति जास बखान ॥ १७ ॥ पाट अचल मेवाड़ पति, रघुबंसी राजान । बापा रावर बड़ बखत, बिरि चीतौर सुथान ॥१८॥ जढ़ौ क्यौं रिषि राय तिहिं, तमु को जननी तात। गह्यौ तिनहिं किंन भंति गढ़, बापा बड़ विष्यात॥१८॥