पृष्ठ:राजविलास.djvu/२४३

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राजविलास । दोहा ॥ धर पुर हरि गिरिवर ध्रसकि, पयदल मसकि पयाल । धारा नगर मालव सुधर, दोरयो साह दयाल ॥ १ ॥ राजा उतपन रोस रस, तारन रित ज्यों तुहि ॥ मालव धर उद्धंसि महि, लच्छि अनंत सु लुहि ॥ २ ॥ षाग त्याग दुहुं भांति षिति, नितु २ नाम नवल्ल ॥ षाग त्याग विनु क्षत्रिपन, प्राख्यो यू अकतुल्ल ॥ ३ ॥ मंगि हुकम महराण, सुवर सुभट संजोर ॥ चढ़यो लेइ चतुरंग चमु, अवनि कपि चहुं ओर॥ ४ ॥ धरि गिरि अंबरधु धरिय, दिशि दिशि उठि दहरिक॥ आडंबर रबि प्रावरिय । चित दिगपाल चमक ॥ ५ ॥ कवित्त । प्रचलि चित्त दिगपाल भमि तजि भग्गि प्राप भय । उजरि नेरपुर उझकि बिझुकि गढ़ कोटदुर्ग गय॥ यकि राह थरहरिय थान थानह असुरायन । बजि अवाज गुरु गाज जानि जग पा पंचायन ॥ परहरिय सुमज क्षितिधर पलक जनु धारा हर धरहरिय । मालव सुदेश सद्धन सुमहि सजि सुसाह दल संचरिय ॥ ६ ॥ __कहुक दंड किज्जियहि कहुक लिज्जियहि पेसकस । यप्पि कहुक निय थान रिपुन रुक्कियहि रोस रस ॥ कहुक बंक वैरिन गहिब्ब घल्लियहि जेल गल । कहुक लच्छि लुट्टियहि कहुक भेलियहि दुर्ग भल । कहु कोट जाट कबिलान के उयलि पथलि थल बिथल