पृष्ठ:राजविलास.djvu/२५

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राजबिलास। सो प्रबंध रचियै सरस, रंजन मन महरान । उत्तम नप गुन अंषते, कमला किनि कल्यान ॥२०॥ कवित्त । चित्रकोट गढ़ चारु, मंडि चित्रांगद मोरिय । रघु करत तहँ राज, ढाहि अरिजन ढंढारिय ॥ तीन लष्य तोषार सहस त्रय मद झर सिंधुर । सहसु रत्थ भर शस्त्र प्रबल पायक अपरंपर ॥ घन सेन जानि पावस सु घन जय करि रण रिपु जग्गवै। अति तेज देश दश अढ से, भू मेवारहि भुग्गवै ॥२१॥ ___मेद पाट मालवौ सिंधु साबीर सवा लख । सोरठ गुज्जर सकल कच्छ कांबोज गौड़ रुष ॥ बावन धर बैराट ढुढि बागरि ढुंढारह । नरवर नागर चाल खग्ग छप्पन वैरारह ॥ देखिए देश ए अठ्ठदश चित्रांगद मोरी सुचिर । मह चित्रकोट तिन मंडयौ थप्यो नाम निज.अवनि थिरि ॥ २२ ॥ दोहा। चित्रांगद तें सत्तमें, पाटें नप चित्रंगि। राज कर चीतौरिधर, पल दल षग्ग निषंगि ॥२३॥ : ___अथ बापा रावल उत्पत्ति । कवित । पच्छिम दिशा प्रसिद्ध देश सोरठ धर दीपत । नगर बल्लिका नाय जंग करि आसुर जीपत ॥ राजत श्रीरघुबंश पाट रघुनाथ परंपर । गृहादित्य नप गरुन्न