पृष्ठ:राजविलास.djvu/२६१

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२५४ राजविलाम। तुरकानी दल पर तुरी, तेल. न लगे भुवाल ॥५६॥ तबही बग्ग गहें तुरित, सकल सूर सामन्त । करें बीनती कुंवर सों, शीतल भाष सुमंत ॥ ५७ ॥ अथ झाला चंद्रसेन जी की अरदास । प्रभु हम प्राक्रम पेखियहि, धरहु आप मन धीर । प्रथम पदाति युधंत जुधि, तदनु सांइ बरबीर ॥ ५८ ॥ प्रथ चहुवान राव सबलसिंघ जी की अरदाम । हम समान सेवक सहस, निपजें बहुरि नबीन । सांई सेवक लक्खकनि, पोषन को प्रभु कीन ॥८॥ अथ पंवार राव वैरीसाल जी की अरदास । सांई इह सेना सकल, हय गय सुभट समाज । समर समय ही का सजे, कहा और हम काज ॥६॥ अथ सगताउत रावत केसरी सिंघ जी की अरदाप्त । सांइ काम सेवक मरे, तो तित स्वर्गहिं ठौर । सांई पंखे संकरें, तिनहिं नरग नहिं और ॥ ६१ ॥ अथ चोंडाउत रावत रतनसिंघ जी की अरदास । सांई रक्खे सीस पर, सेवक लरे सुभाइ । जब सेवक साहस बढ़े, तहं प्रभु करे सहाइ ॥६२॥ अथ सगताउत रावत महुकम सिंघ जी की अरदास । मनिधर ज्यों थिर यप्पि मनि, आप तास सुप्रकास । चेजा करत सचेत चित, त्यों हम लरन उल्हास ॥३॥ अथ राव केसरी सिंद जी की अरदास । सांई सिरजे हुकम का, हुकम दिपाउनहार ।