पृष्ठ:राजविलास.djvu/२६६

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२५ राजविलास। हथ बाहु सुमुहिन मुट्ठि ज्यों मल्ल जुरें ॥ ६ ॥ भभकें करि सुण्ड बिहंड भसुण्डह चच्चर रत्त प्रवाह चलें ॥ उछरें अरि षंड सुजानि अजग्गर जंगल . केलि करत जलें ॥ उड़ि श्रोनित छिछि उतंग अया- सहिं संझ समान सुबान बढ्यो । बलि लेन बिताल रु बीर बिनोदिय चीसठि युग्गिनि रंग चढ़यो ॥ ७ ॥ लगि लुत्थिन लच्छि उलच्छि पलच्छिय हत्थिन हत्थिय ब्यूह अरे ॥ हय सत्थ किते हय ग्रीवह बस्सिय बाढ़ बिहस्सिय भूमि ढरे ॥ दुटि टोप रु बान कृपान सरासन तीर तरकस कुन्त तु ॥ घर बेरष बंबरि झंड उझझरि नेज रु नारि अराब फटें ॥८॥ बहु रूप बिलास प्रहास समीहित ईशर अंबुज माल गुहें ॥ सब केक हकारि बकारि सुउद्यहिं गिद्धि- नि तुडनि मुड गहें ॥ प्रहनंत दुहूं पष बीर पचारत बाहि समाहि बदंत बली ॥ तिन सद्द सुनंत सुनारद तुबर रक्खस जक्ख सुहोत रली ॥ ८ ॥ अरि मुड किते हय गय पय ठिप्पर चोट चा- गान की दोट भये । रनरंग रलत्तल रत्त महीतलं चक्क चलंचल चंड जुए ॥ रस भैरव भूत पिचास महारग दैतरु दानव दंद चहैं । सुर इंद सबै मिलि सूर सरा- हत हो हिंदुवान की जैति कहैं ॥ ८ ॥ रुरि रड रुसुंडनि नार मलेछनि सेन सुषंड