पृष्ठ:राजविलास.djvu/२९

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राजबिलास। एक दस बरस तिहिं प्रति क्रम्या अनुक्रमे । साहसै धीर वर बीर जोवन समै ॥ बनहि क्रीड़ा तणौ विसन तिहिं नर वरू । पंच सय सच्छ बालेण संपर वरू ॥ ४४ ॥ ___एक दिन एक जोगिंद अवलोकियौ । सिद्ध हारीत गिरि कंदरा संठियौ । थिर तिहां रुद्र इकलिंग 'नौ थानयं ॥ प्रणमिया उभय योगिंद प्राधानयं ॥४५॥ पुष्प फल करिय रिषिराय तब पूजियौ। मिठ्ठ बयणें कहै अघ धनी मोजियौ ॥ देव तुम दरसणे दूरि नछौ दुषं। सकल संपत्ति मिलि अद्य सु हुवै सुखं ४६॥ सेव दो जाम लग तांम तिण साचवी । नयण वयणे मिल्यं प्रीति बांधी नवी ॥ चरण रिषि वर तणे अधिक रंज्यौ चितं । हद्द लग्गो सु. योगिंद बापै हितं ॥ ४७ ॥ _____ मंगि आदेश आयो तदा मंदिरै । सयन किद्धा निशा चित मुनि संभरै ॥ जो हुवे मात तो पास तस जाइये । षीर ने पंड घत तास षवराइये ॥ ४ ॥ प्रात हुवां पचावै परमानयं । मंडकं सरस घत पंड मिष्टान्नयं ॥ जजलै अंवरै तेह आलादिय । करषि कोदंड कर शिलिमुषं संधियं ॥ ४ ॥ __क्रमि क्रमैं पत्त सो तच्छं गिरि कंदरा । बाघ बाराह निवसे तहां बंदरा ॥ पाय बंधन करी दिद्ध परसादयं । सिद्ध बर किद्ध आहार सुस्वादयं ॥ ५० ॥