पृष्ठ:राजविलास.djvu/३३

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राजबिलास। हलंतेह ठाला, मनौ मेघमाला ॥ ३ ॥ सची सी सहेली, पढें जे पहेली। करती सुकेली, दिनेशं दुहेली ॥ ७४ ॥ . सबै लीन सथ्थे, अमानै सु अथ्ये । महा द्विरद मथ्थे, चढ़ चारु पथ्थें ॥ ७५ ॥ घुरती धमस्से, निसानं निहस्सें। करी कुंभ कस्सें, जयं जै सु जस्सै ॥ ७६ ॥ भणे बिरुद भट्टा, घने घाघरहा । यटे बाजि थट्टा, बहैं सेनु पट्टा ॥ ७ ॥ पुरं सुप्रवेसं, निहारें नरेशं । बहू बालबेशं, वनीता विषेशं ॥ ७ ॥ सु संग्राम सीहं, अभंगं अबीहं । करें हर्ष काडं, जगानंद जोडं ॥ ७ ॥ नियं पुत्ति पुत्रं, सु लोकेस पुत्रं । दिए ग्राम दानं, सिसोदा सुथानं ॥ ८० ॥ वसे तच्छ वासं, उमंगे उल्हास । रची राजधानी, शिवा सु प्रमानी ॥१॥ प्रगट नाम पायौ, सिसौदा सुहायो । सबर एक शाषा, भनें देव भाषा ॥२॥ भलौ काम भोगी, स्ववामा सँयोगी। रमै रत्ति दीहा, जपै को सु.जीहा ॥ ३ ॥ किने चित्र काटें, सुजपीस जोटें । बर ब्याह वत्तं, चित्रंगी म चित्त ।