पृष्ठ:राजविलास.djvu/३४

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राजबिलास । उपन्नौ अचज्ज, कहे मंत्रि कज्ज । पठायौ सुपत्तं, दियं पुत्रि दत्तं ॥ ४ ॥ क्रमें ब्याह किन्नौ, लछी लाह लीनौः। नियं पुत्रि नाथं, समप्पै सु सायं ॥ ५ ॥ हयं दो हजारं, सुवर्णो सिँगारं। दिए मत्त दंती, परी प्रानि पंती ॥ दयौं अद्ध देशा, मिवारं महेशो दई केई दासी, रची रूप रासी ॥८६॥ जरी पाद्य जामा, समप्पै सकामा । दयो कोटि हेमं, प्रगटि मानि पेमं ॥ ७ ॥ मुथाने संपत्ते, रमें रंग रत्ते । वनीता विनोद, महा चित्त मोदं ॥८॥ कितै काल वित्तै, वदी दूत वत्तें। चित्रंगी चढ़ाई, करें कच्छ जाई ॥ ८ ॥ चलौ चित्र कोटें, इला दुर्ग ओटें। रषौ अप्प राजा, सजौ बेगि साजा ॥ ८ ॥ सुने दूत शद्द, निशानं सुन । भयौ मान भायौ, उमंगे यु आयौ ॥१॥ दोहा । चित्रकोट पाए सुचढ़ि, बापा नप बर बीर । मोरी चित्रंगी मिलें, साहस वंत सधीर ॥ २ ॥ चित्रंगी तब हो चढ़े, बंब निशान बजाइ ।