पृष्ठ:राजविलास.djvu/३५

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राजबिलास। बापा बीरहिं राखके, चित्रकोट चित चाइ ॥ ३ ॥ चिंतिय बापा बीर चित, नप इनदे निज धीय । बंधन बंध पेमके, कीने अनुग स्वकीय ॥ ४ ॥ हम हूं नप निज थान हैं, इह नप इनके थान । करें न हम पर किंकरी, यो न तजै अभिमान ॥५॥ रहय कवन उद्योत रवि, सिंह बहय नहिं सीर । इंद कवन आधीन हुइ, हम रोजा रनधीर ॥६॥ चित्रंगी मुशिव चल्यो, जेजे सुभट जुझार। अवनि गांव तिन दै अधिक, किए सुआज्ञाकार ॥४॥ चित्रंगी कच्छहिं चलिय, पिहि सु पुच्छिय पंच । बापा बीर महा बलिय, सज्यो कोट लहि संच ॥४॥ गोरा नारि सुसोरघन, शस्त्र भृत्य सु विचार । हय गय रय पायक हसम, भरि अन धन भंडार ॥८॥ कबित्त । बापा नप बर बीर तान निज दुर्ग भलाइय । चित्रंगी चित चंड साथ दल सज्जि सवाइय ॥ चढ्यौ कच्छ पर चूक धरनि पुरतारहिं दुज्जिय । पल कुल अति घरभरिय भग्ग अरि भूमि सु तज्जिय ॥ दीसंत मग्ग ननं दिशि विदिश रवि मंडल छायौ सुरज । दिशि छंडिभग्गि दिगपाल दस गद्यत गुहिर सु शद्दगन ॥ १०॥