पृष्ठ:राजविलास.djvu/३७

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राजबिलास। उत नैं मारी दल अधिक, चित्रंगी चित्त चंड । आयो गढ़पति ऊपरे, मंडिय दुहु रन मंड ॥ १०६ ॥ छंद दंडका। . मिलिय बापा वीर मोरिय, कुरे दुहुं वर वीर झोरिय । सनन सद्द अवाज सोरिय,, गगन गुजत बहत गोरिय ॥ १०७ ॥ छुट्टि बाननि भान छाइय, उड़ि मनु घनघोर पाइय। धींग धसमस करत धाइय, पेषि कायर. नर पलाइय ॥ १०८ ॥ ठनकि गज घंटा सु ठननन, भनकि भेरि नफेरि भननन । पनकि पग उनग्ग वननन, झनकि ज्यों झल्लरी झननन ॥ १०८ ॥ ... किलकि कर क? कटारिय, देषिये दीरघ दुधारिय । दुढि दुढि सुपिन्न ढारिय, वीर निज. निज बल बकारिय ॥ ११० ॥ झाट झरडि बज्जि घग झट, घमतु घायल घाव घण घट। गिद्ध पीवत श्रोन घट घट, जिंद ढूढत फिरत शिर जट ॥ १११ ॥ सूर झूझत सार सारह, झरत शीश सुरंग झारह। धुकत धर धर लगत धारह, मंडि मुख मुख मार मारह ॥ ११२ ॥