पृष्ठ:राजविलास.djvu/३८

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राजबिलास। नपत वीर कमंध नच्चिय, रोस रस रन रंग रच्चिय । सिंध सुर सहनाइ सच्चिय, मांस रुधिर सु पंक मच्चिय ॥ ११३ ॥ वित्त आयुध होत लथ बथ, रबकि किन चक- चूर किय रथ । भिरत भींच सुभार भारथ, प्रगटि मनु दुर्योध पारथ ॥ ११४ ॥ .... संमुख सज्जिय सूर सूरह, प्रचलि श्रोन प्रवाह पूरह । झाक बज्जत होत झूरह, नयन रत्त सुवीर नूरह ॥ ११५ ॥ देत निज निज पति दुहाइय, समरि परमेसर सहाइय । घुरिय घाट विघाट घाइय, भूत प्रेत पिशाच भाइय ॥ ११६ ॥ __उड़िय रेनु सुदंकि अंबर । झमकि डोंरू नद्द डंबर । तवत गायन देव तुंबर, सुरन मन रन जानि संबर ॥ ११७ ॥ ... समर हय गय फिरत सूनह, चरन पयदल होत चूनह । लहिय उयरें सांइ लॉनह, दपटि गजघट चित्त दूहन ॥ ११८ ॥ ढहिय सिंधुर परिय 'ढेरह, मानु अंजन वर्ण मेरह । घिरिय द हु दल करिय घेरह, जोध इक बहु करत जेरह ॥ १८ ॥