पृष्ठ:राजविलास.djvu/४०

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राजबिलास । देव देवि विमान दरसिय, व्याम हुँ त सुकुसुम बरसिय । सजल सहज सुगंध सरसिय, चवत मान सुजान चुरसिय ॥ १२७ ॥ चित्रकोट गहि चित चुरस, बापा नप बड़वार । मारी कच्छहिं मुचि वर, करि निज आज्ञाकार १२८ देश लिये निज अठ्ठ दस, मेरी आनहिं मेटि। बापा बीर अनंत बल, शत्रव सकल समेटि ॥१२॥ पाए नप दुर्गहि अतुल, नोवति बज्जत नाद । मंडय को नप महिय लहि, बापा नृप सम्बाद ॥१३०॥ कवित्त । जय पत्ते जुरि जंग, महामारी दल मारिय । बापा नप बर बीर बषत बल रद्य बहारिय ॥ करि सुराज चित्रकोट नाद नोबत्ति निसानह । हय गय पय- दल हसम गनक को गिनय सु ज्ञानह ॥ पेषल सघन उल्लटि प्रजा, वनिता कलस बँधाइ बर । चित प. सिंगारिय सकल गृह तारन मंडिय तुग तर ॥ १३१ ॥ दोहा। तोरन मंडप तुंग तर, सेविन रतन सिंगार । मुकर पंति पट कूल मंय, दीपत राज दुपार ॥१३२॥ राज महल संपत्त रसु, सावन तुला सँचिट । जज्ञ सुमंडिय जयति का, बाघासनहिं बइठ्ठ ॥१३॥