पृष्ठ:राजविलास.djvu/४१

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राजबिलास। इंद्र सभा की ऊपमा, थटि हय गय भट थट्ट। बंदी जन बुल्लय बिरुद, भार चारना भट्ट ॥ १३४ ॥ कबित्त । सत्तम दिन निशि समय प्रहर पच्छिलय प्रसि- द्धह । सुपन पत्त श्री कार सोइ हारीत सु सिद्धह ॥ अवनी पति प्रति अंखि वीर बापा सुनि बत्तह । तुमहि सु हम संतुट्ट दीन चित्रकोट सु दत्तह ॥ पय रद्य अचल मेवार पति बचन रह संदेह बिनु । अब रावर पद तुझ अप्पियहि सुत संतति सबहें मुदिन १३५ दोहा। सिद्धि अप्पि रावर सुपद, अंगहि धरि निज अंस । गय योगिंद सु गगन गति, पढ़ि भूपति सु प्रसंस१३६ जग्गी बापा वीर जब, उदयो अरक अभंग । राजन अति उत्साह रचि, रावर पद गहि रंग १३७ कवित्त। रावर पद गहि रंग. वीर बापा सु सुद्धि वर । बापोती सु बहोरि धरिय भानेज अन्य धर ॥ पंच लक्ख हय पवर सहस दस मत्त सु सिंधर। पनर लक्ख पायक सु सत्त सय सुंदरि सुदर ॥ नव हत्थ देह सु प्रमान निज भक्त सवा मन जास भाल । पल बावन टोडर इक्व पय बापा रावर,अतुल बल ॥ १३८ ॥ इति श्री मन्माम कवि विरचिते राजविलाम शास्त्रे राउल श्री बापाजी कस्योत्पतिः रावल पद स्थापना चित्रकोट . राजस्थान करण मा प्रथम विलास सम्पूर्णम् ।