पृष्ठ:राजविलास.djvu/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

राजबिलास। सूर बीर दातार सु सीलप । लच्छी पति सम जसु जस लीलह ॥ मंगल कहत एह कवि मानह । बसुधा नायक सरस बषानह ॥ २२ ॥ कवित्त । करन पुत्र दुन कहिय जिठ राहप त्रिभुवन जस। माहव दुतिय महिंद बाघ रिपु करन अप्प बस ॥ राणा पद राहपहिं लीन करि उत्सव लक्खह । संवत तेरह शुद्ध पच दस बरस प्रतक्खह । यपि एकादश कुल देवि, थिर याग भाग बंधिय जगति ॥ दुहुँ बेर वरस मंडे सु दुति, नौमी दिन पूजै नपति ॥ २३ ॥ दोहा। राना राहप रंग रस, इच्छित पूरन मास । रोवर पद माहप रच्यो, जूव राज करि जास ॥२४॥ छन्द मिसानी। राहप रान अजेय रन, जननी धनि जाया । कृतब उंच कीए जिनहि, मह जज्ञ मंडाया ॥ अजा सिंह दुहुँ घाट इक, पानिय तिन प्याया । राणा पद लिय रंग सौं, कुल कलस चढ़ाया ॥ दिनकर रान दिनेश दुति, सक बंध सवाया । राना श्री नरपति रघु, विधि अप्प बनाया ॥ २५ ॥ ___ जयवंता जस करन जग, करमेत कहाया। सज्जन जनहिं सुहावना, अपरहि असुहाया ॥ २६ ॥