पृष्ठ:राजविलास.djvu/४६

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रामबिलास । पुन्यपाल राना प्रगंट, परमेश्वर पाया। मुख देखत रिधि सिधि मिली, मन सोच मिटाया॥ पीथड राण अडोल पग पतिसाह बुलाया। अन मन बांए अतुल बल, भल दंड भराया ॥ २७ ॥ भूमिभोग पति भाणसी, राना सु रिझाया । दैहैं मुहँ मांग्या दरब, कुंदन सुकटाया ॥ भीमसरीसे भार- थनि भल भीम भलाया । शवव कहूं न रहिं सके सबू जगत सुधाया ॥ २८॥ . रान अजय सी बीर रस, पल जूह पिलाया। नारद तुबर नच्चिया, गुण ग्रंधव गाया ॥ लषम सीह जस लोभिया, बसु घण बरसाया। राजस गुण जत रति रवन, अवतार उपाया ॥ २८ ॥ अरसी राण महा अनम, हल्लय न हलाया। सिंधूर तुरंग समप्पनां, दत नाम दिपाया ॥ शीश जास गंगा सलित सिव रूप सुहाया। रज्ज बहोरि हमीर रांण रघुबोल रहाया ॥ ३० ॥ खेलत राण सभाहि षग, अरि कट्ट उड़ाया । पर दुख कातर पुहबि पति, बड़ बिरुद बुलाया ॥ लाषण सी राणा सु लच्छि, तनु सोवन ताया । बंश बिभूषन दल बहुल, दिल दत्त दिढ़ाया ॥ ३१ ॥ मोकल राण उदारं मन, निज सुजसनि पाया। वैरी पकरि दिनच्छना, जनु सिंह जगाया ॥ कुंभ राख