पृष्ठ:राजविलास.djvu/४७

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राजबिलास। अषियात कलि, लष हेम लंगाया। पनरा से पचरो तरै, परगट परनाया ॥ ३२ ॥ कुंभल मेर अजीतगढ़, बहु लोक बसाया । महत रंभ आरंभ करि, महिदंद मिटाया ॥ चित्रकोट चित चूप सौं, कमठान कराया। कुंभ सामि देवल कलस, धज दंड धराया ॥ ३३ ॥ राणा जाच्या रायमल, लष दान सु ल्याया। संपति जिहिं पाई सकल, भव दुःख भगाया ॥ राण संग्राम सुरोस रस, सजि कटक सवाया। नर वर दुर्ग निसान लिय, लछि नगर लुटाया ॥ ३४ ॥ उदय सिंघ राणा अनम, जग नाम जनाया। अलकापुर सम उदयपुर, बर नगर बसाया ॥ राण प्रताप सुरुद्र रस, मह जंग मचाया । अबदुल्ला सरिषा असुर, गज सहित गिराया ॥ ३५ ॥ सहस बहत्तरि दल सकल, पग मारि पिसाया। साहि अकब्बर संकयौ, ए बीर उपाया ॥ अमरा रांण सदा अमर, गुण गीतहि गाया। अरिजन भुज वल पाहुनिय, घन सुजस घुराया ॥ ३६ ॥ करण राण चढ़ती कला, संसार सुणाया । बसुधा नायक अति विभव गुरू बषत गिणाया ॥ जगतसिंघ राणा सुजय, जस करि जग छाया। नाखत मान निधान ए, तन मन भाया ॥ ३० ॥