पृष्ठ:राजविलास.djvu/६०

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राजबिलास । किते मन हटिय कंगहि काच, बहू विधि मुदरी हार सु वाच । पंना नग मुत्तिय लाल प्रवाल, करी रद कुंपिय विंदुलि भाल ॥ १३५ ॥ किते षट दर्शन् आश्रम मैंन, सा लाजल वेग समेत सचैन । लहैं बहु दांनरू मांन भुगत्ति, सबै जग सेवत योग युगत्ति ॥ १३६ ॥ कहूं कठियार क्रीणंत कबार, भरे केउ मोहन इंधन भार । अलेषहि लादे पनि सुचार, करें क्रय घासिय घास अपार ॥ १३७ ॥ ____ कहूं नट नचत जूझत मल्ल, कहूं कहुं पिक्खन ध्याल नवल्ल । कहूं बर पंडित बोलत बाद, कहूं निपजंत नए सु प्रसाद ॥ १३८ ॥ कहं तिय साहव गावति गीत, बजै डफ ढोल मृदंग पुनीत । कहूं नप दासि बडारनि झुड, सजै तनु सार सिंगार सु मंड ॥ १३ ॥ कितेइ सौदागर अश्व सिंगारि, दिषांउन नहि राज दुआरि । बहू रंग चंचल वेग विग्यान, ततथेइ येइ सु नच्चत तांन ॥ १४० ॥ किते उमराव हयग्गय. सेन, किते बहु सेठरु साहस चैंन । किते पशु वृंद किते नर नारि, म. बहु भीर बजार मझार ॥ १४१ ॥ .