पृष्ठ:राजविलास.djvu/६७

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राजबिलाम। दिन दिन आवहि राज दिवान, सबै नप बर्ग करै सनमांन । अतिा ति अंग सु पुन्य अंकूर, सभा मधि उग्गिय जांनि कि सूर ॥ १८३ ॥ अनुजम बर्ष दुतीय सुभाइ, सबै नर नारि सुनंत सहाइ । बोले तब राज कुंभार सु बोल, सुधा रस सक्कर के सम तोल ॥ १८४ ॥ तनू मुख पत्त सु वर्ष तृतीय, प्रमोदित भोजन भुजत प्रीय । मया करि अप्पजिववति माइ, अपूरब चीरहि बाउ उडाइ ॥ १८५ ॥ रच्यो बर आसन आडनि रूप, संयप्पिय कुंदन थार सरूप । कमोदिय तंदुल जानि कपूर, परोसिय घीउ सु सक्कर पूर ॥ १८६ ॥ सुभाउत तीउन भूरि संघान, प्रसंसिय ऊपर तें पय पान । अघाइ चलू भरि वारि अमोल, तईवर तांमल बंग तमोल ॥ १८७ ॥ चतुर्थ सु पंचम षष्टम चार, अतीत संवत्सर यौं अबिकार। संपत्तिय वर्ष सु सत्तम सार, करेंवर केलि सु राज कुमार॥ १८ ॥ प्रधान सु बंधहि तीलक पाघ, अमोलिक अंशुक जामैं प्राध ॥ विराजत अरकस के कटिबंध. सुकंठहि चौसर फूल सुगंध ॥ १८ ॥