पृष्ठ:राजविलास.djvu/६८

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राजबिलास। प्रधान सुधात पटोरे सुहाइ । जिर्गमिग मी जरि योति जराइ ॥ सु सोभित कंचन हीर सिंगार, कला- कर रूप कि देव कुमार ॥ १० ॥ ____बषानिय या बिधि अष्टम वर्ष, हुदै निज आठोहि जांम सु हर्ष । लरावहि मल्ल महारस लुद्ध, करी मद मत्त भरे बर क्रुद्ध ॥ ११॥ नवं नव नाटिक गीत सुनित्त, दिजै दशमैं बहु वंदिन दत्त। एकादश बर्षाहि अंग अन रमै कबि मांन सदा रस रंग ॥ १२ ॥ इति श्रीमन्मान कवि विरचिते श्री राजबिलास शास्त्रे द्वितीयो विलासः ॥२॥ दोहा। पानि ग्रहन बुदी प्रथम, कीनो राज कुंभार । कवि वर चित्त प्रमोद करि, अरकै सो अधिकार ॥१॥ कवित्त । हाडा नप अति हठी हसम जित्तन रखन हठं । सबर राव छत्रसाल मारि सब शत्रु किए मठ ॥ राज यांन रमनीक बिकट बुदी गढ़ बिलसत । विविधि वस्त्र बाजार सकल श्री युत जन सोभित ॥ बहु वाग वावि सर जल बहुल गुरू उतंग जिन विष्णु गृह। कबि अप्प कहै ऊपम किती अलकापुर सम सेभि इह ॥२॥