पृष्ठ:राजविलास.djvu/७३

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राजबिलास। छत्रपति राय सिर एक छत्र, श्री सबर राय साधंत शत्रु । ध्रुव देव धराधर सरिस धीर, बसुधा- धिराय बल बिकट बीर ॥ ३३ ॥ प्रचलंत यवन पति जाप यान, भरि गेन रेनु धुन्धरिग भांन । दिगपाल दौं भज्जै दहकि, किलक युबीर उठे कुहुक्कि ॥ ३४ ॥ वैताल फाल मंडै विनोद, मिलि चलें झुण्ड चौसहि माद । हरषै युरुद्र करि. अट्टहास, सुर कहत सट्ट जय जय सभास ॥ ३५ ॥ सलसलत सेस कलमलत कच्छ, झलझलत उदधि रलरलत मच्छ । परभरत चित्त षल दल अधीर, चलचलत चक्र चहुं डुलत नीर ॥ ३६ ॥ धसमसत धरनि गिरिवर धसक्कि, सर सरित कलित इह सलिल सुक्कि । मचि जोर सोर परि अमग मग्ग, जनु लंक लेन रघुबीर जग्ग ॥ ३७॥ ____संजनिज चित्र सुर राय संक, बीराधि बीर अरि हरन बंक । भय जास भीम पर धर भजंत, तिय पुत्र भ्रात परि जनत जंत ॥ ३८ ॥ अरि बांम बाल बन गिरि अटन्त, फल फूल खाइ अह निसि कटन्त । सुख सेज मुक्ति के शत्रु नारि, नट्ठी सुनिसा नौसर निहारि ॥२८॥