पृष्ठ:राजविलास.djvu/७७

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राजबिलास। नालिकेर अप्यौ नपति, सदल सजाई सच्छ । मोहित राज कुमार के तिलक कट्टि निय हच्छ ६० जैवन्ता दम्पति युगल, हौ तुम पूरन हाम । हाँस हमारे हृदय की, कीजै देव सकाम ॥ ६१ ॥ मोहित ए माशीश पढ़ि, उत्सव मंडि अमोल । घन ज्यौं धन त्र्यंबक घुरत, बोले निश्चल बोल॥२॥ कवित्त । मोहित सच्छ प्रसन्न रॉन जगपति जग रूपह । दीन अनग्गल दाँन अख शिर पाव अनूपह ॥ कनक रजत पट कूल बसन भूसन बहु बित्रह । आदर भाव अनंत प्रेम पोषंत प्रविवह ॥ आयो सु निकट तब लगन अह मोहित अरिक नरिन्द प्रति । श्री करण राँण पाटहिं सधर प्रत पोराना जगतपति ॥ ३ ॥ दोहा। प्रत पौराना जगतपति, एह सुनौ अरदास । आयो निकट सु लगन अह, अब हम पूरहु पास ॥६४ सच्छ सेन चतुरंग सजि, राजकुंभर बर रूप । प्रभु बुन्दीगढ पाठवहु, अबला बरन अनूप ॥ ६५ ॥ छन्द वृद्धि नाराच । सुनन्त राज बिन सद्द नेह हिन्दु नायकं । सजी सु चातुरंग सेन लच्छि ईश लायकं ।।