पृष्ठ:राजविलास.djvu/९७

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राजविलास। सुरेन्द चन्द सूर ते शरीर तास रूप हैं। अनेक जूथ सत्य भूप भेटई सु भूप हैं ॥ समप्पई सुपत्त सिद्धि सोबनं सु सूप हैं । धराल शुद्ध जा दुधार धारि हत्थ धूप हैं ॥ ५५ ॥ डहक्कि मिछि जास डिम्भ डिम्भ बाम संझरे । जिहान पान कान जोध जंग आइ सो जुरे ॥ भुजाल भीच भारथों भयङ्क भीम ज्यों भिरें। अरस्सि महाराज को गुनी सुबोल उच्चरें ॥ ५६ ॥ अतेव अन्स अखिये इला अभङ्ग आन जू । दिनं दिनं सुमान देत राज सिंह रान जू। तवंत पुरा त्रिलोक उक जान बान जू । सु सद्द ए सुधा समं कहे कविन्द मान ज ॥ ५७ ॥ ॥ कवित्त ॥ राजसीह महाराण कुंभर करमेत कुलोद्धर । जयवन्ता जग जोध जंग जीतन जोरावर ॥ अरि उलूक आदित्य घाउ मेरे पर गज घट । देत सुकवि कर दत्त प्रवर करि अश्व कनक पट॥ कुंजर समिछि कुंभहि कलन कहिय कँधाला केहरी। जयसीह कुंभर दिन २जयो उमगि गहन धर आसुरी५८ छन्द उद्धोर। जय जय कुंभर श्री जय सीह । अति अवगाह अङ्ग अंबीह ॥ उत्तम रूप सुक्रत अन्स । प्रवर सु पुहवि मांझ प्रसंस ॥ ८॥