पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१००

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दूसरा दृश्य (स्थान-दिल्ली का शाही महल-बादशाह आलमगीर और उसकी बेटी ज़ बुन्निसा | समय-सन्ध्याकाल । महल का खुला हुश्रा सुसज्जित नजर बाग) बादशाह- तो रूपनगर का राजा मर गया ? जेबुन्निसा-जी हाँ जहाँपनाह । उसके भतीजे रामसिंह ने अर्जी भेजी है कि वही रूपनगर की गद्दी का सही वारिस है। वह तख्ते मुग़लिया का वफादार और पुराना शाही खादिम है। उसे शाही फर्मान के जरिये रूपनगर का राजा तस्लीम करके सरफराज किया जाय बादशाह-मगर उसने उस अम्र का क्या जवाब दिया है ? जेबुन्निसा-हुजूर, उसने कहला कर भेजा है। उसकी नाचीज बहिन को अगर बादशाह बेगम बनने की खुशकिस्मती बख्शी जायगी तो यह उसके लिये फख की बात होगी। वह शाही रिश्तेदारी को अपने लिये इज्जत की चीज़ समझता है। बादशाह-बहतर, कल उसके पास शाही सनद भेज दी जायगी और वह रूपनगर का राजा तस्लीम कर लिया जायगा बदनौर और मांडल के परगने भी उसे दे दिये जायेंगे।