पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१०२

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श्य तीसरा अंक बादशाह-तुम्हारे खयालात काबिले गौर हैं। (कुछ सोचकर ) बहतर, मैं उस राजा की अर्जी मंजूर करता हूँ। मैं आज ही फौजदार दिलेरखाँ और हसनअलीखाँ को ५० हजार फौज तैयारी का हुक्म देता हूँ मगर जबुन्निसा-अब जहाँपनाह किस अम्र पर गौर करने लगे ? बादशाह-यही, कि क्या वह राजा की बेटी बादशाह की बेगम बनना पसन्द करेगी। तुमने कहा था न कि, उसने मेरी तस्त्री पर लात मारी थी। जेन्निसा-जी हाँ हुजूर, वह बहुत ही मगरूर भी है। बादशाह और साथ ही आलमगीर को दिल से नफरत करने वाली भी। जेबुन्निसा-उसकी यह मजाल ? एक मामूली काफिर जमीदार की बेटी की यह हिमाकत ? उसे पहिले गुस्ताखी की सजा दी जायगी। बादशाह-(कुछ सोचकर ) तुम उसके लिए क्या सजा तजवीज करती हो जेबुन्निसा। जेबुन्न्सिा-अब्बा जान ! अगर उस गँवारिन के दिमाग में जरा भी मग़रूरी पाई गई तो उसे कुत्तों से नुचवा डालूंगी। बादशाह-(मुस्करा कर ) और उसके बाद ? बेबुन्निसा-उसके बाद । अब्बा' बादशाह-मगर मेरी प्यारी बेटी । किसी लड़की को बादशाह