पृष्ठ:राजसिंह.djvu/११

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इसके बाद बादशाह ने दूसरी युद्धयोजना यह की कि शाह- ज़ादा आज़ैम चित्तौड़ से देवारी और उदयपुर होता हुआ पहाड़ों में बढ़ और मुअज्ज़म राजनगर से तथा अकबर देसूरी से। इस . धावे में बादशाह ने चित्तौड़, पुर, मांडल, माडलगढ़, वैराट, भैस रोड़, मन्दसौर, नीमच, जीरन, ऊँदाला, कपासन, राजनगर और उदयपुर में अपना दखल कर थाने नियत किए । अकबर उदयपुर आया और श्री एकलिंग की ओर को बढ़ा। रास्ते में नाके नाके पर लड़ाइयाँ हुई । इनमें कोठारिये के रुक्मांगद के पुत्र उदय- भान और अमरसिंह चौहान ने बड़ी वीरता दिखाई । उदयभान को वीरता के उपलक्ष में १२ गाँव मिले । हसनअलीखॉ जो पहाड़ों में घुस गया था परास्त होकर भागा। अब महाराणा ने कुँवर भीमसिंह को गुजरात पर भेजा । उसने ईडर का विध्वंस करके बड़नगर को लूटा और ४० हजार रुपये दण्ड लिये। फिर अह- मदनगर जाकर २ लाख का माल लूटा। बादशाह ने मन्दिर गिराये थे, कु० भीमसिंह ने ३०० के लगभग मस्जिद ढहाई। उधर मन्त्री दयालदास ने मालवे पर धावा बोल दिया और नगर नगर से दण्ड लिया तथा थाने बैठाए, मस्जिदें गिराई और कई ऊँट सोने से भर कर ले आया । उधर राठौर साँवलदास ने बद- नौर पर भयानक आक्रमण किया जहाँ फौजदार महिल्लाखाँ १२ सौ सवारों सहित ठहरा था। वह इम आक्रमण से ऐसा घबड़ाया कि सारा सामान छोड़ रातोंरात भाग खड़ा हुश्रा । इसी भाँति शक्तावत केसरीसिंह के पुत्रगंगदास ने ५०० सवारों के साथ चित्तौड़ के पास पड़ी छावनी पर छापा मारा और १८ हाथी, २ घोड़े कई ऊँट छीन कर राणा की नजर किए।जिस पर राणा ने उसको कुँवर की पदवी, सोने के जवर समेत उत्तम घोड़ा और गाँव देकर सम्मानित किया। इसी भाँति कुँवर गजसिंह ने बेगूं पर