पृष्ठ:राजसिंह.djvu/११२

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६७ दृश्य तीसरा अंक निर्मल-यह कर सकोगी। चारुमती -न कर सकूँगी, तो यह अँगूठी है। निर्मल-क्या विष पीकर मरोगी? चारुमती-राजपूतनी फिर पैदा ही किस लिए होती हैं। निर्मल-(क्रोध से) कुत्ते की मौत मरने के लिए। पर कहे देती हूँ यह न होने पावेगा। चारुमती -तब? निर्मल-एक उपाय है। चारुमती-क्या उपाय है ? है कोई ऐसा धीर वीर, जो क्षत्रिय कुमारी की लाज रखे और दिल्ली पति के साथ रार ठाने ? सभी तो राजपूत कुलकलंक मुग़ल बादशाहों के गुलाम हो गये हैं। निर्मल-अब भी धरती वीर शून्य नहीं हो पाई है, सखी ! भगवती वसुन्धरा जब वीरों को जनना बन्द कर देगी तो प्रलय हो जायगी। चारुमती-हाय, इस मुराल वंश के राहु ने राजपूतों के एक-एक वंश को ग्रस लिया है। राजपूत-बाला अब किसकी शरण जाय? निर्मल-मेवाड़ के महाराणा राजसिंह की, जिनकी वीरमूर्ति तुम्हारे मन में बसी है, जिनकी तलवार अजेय है, जिनकी नसों में वीरवर प्रताप और सांगा का रक्त बहता है, यह निर्भय सिंह मुशाल शक्ति से भय नहीं