पृष्ठ:राजसिंह.djvu/११७

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. [चौथा राजसिंह निर्मल-गुरुजी आपने कुछ सुना है। दिल्ली से दूल्हा आ रहा है। गुरुजी-(उदास होकर ) सुना है बेटी, पर उपाय क्या है। भारत के आकाश में से हिन्दुत्व का नक्षत्र अस्त हो रहा है। निर्मल-गुरुजी, आपको कुमारी की रक्षा करनी होगी ? गुरुजी-इस ब्राह्मण के प्राण जाने से कुमारी की रक्षा हो सके तो आनन्द ही है। निर्मल-प्राणों के जाने की बात तो नहीं है, पर जोखिम तो है। गुरुजी-क्या करना होगा बेटी? निर्मल-उदयपुर जाना होगा। गुरुजी-( हंसकर ) समझा । शिशुपाल से बचाने के लिए रुक्मिणी का सन्देश कृष्ण को पहुँचाना होगा। अच्छा जाऊँगा, परन्तु कुछ खर्च वर्च निर्मल-(मुहरों से भरी थैली देकर ) यह लीजिये खर्च के लिए। दक्षिणा पीछे। गुरुजी-(थैली में से पानी निकाल कर) इतनी बहुत हैं बेटी। जबानी सन्देश देना होगा, या कोई पत्र भी है। निर्मल-पत्र है । ( पत्र देकर ) यह लीजिये और यह मोती की माला । राणा जब पत्र पढ़ने लगें तो यह माला प्राप उनके गले में डाल दें। और सब कुछ आप पर प्रकट है ही, जैसे हो राणा को राजी कर लें।