पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१२०

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१०५ श्य] तीसरा अंक सब-(एक स्वर से चिल्लाकर ) शरणागत अभय । राणा-निस्संदेह मेवाड़ की भूमि पर शरणागत अभय है। परन्तु भाइयों, राज-काज की बातें केवल वीरता से ही पूरी नहीं होतीं। उनके लिए राजनीति और आगे-पीछे की बातें भी सोचना राजा का धर्म है। यह तो ठीक है कि शरणागत राजपूत बाला के धर्म की रक्षा की जाय । परन्तु कैसे ? दिल्लीपति का कोप हमारे ऊपर बढ़ता ही जाता है । फरमान पर फरमान पाते हैं और हम टाल दूल करते जाते हैं । जजिया के विरुद्ध हमने पत्र लिखकर बादशाह को नाराज कर दिया है। शाही मर्जी के विरुद्ध हमने चित्तौर की मरम्मत कराई और कई ठिकाने छीन लिये हैं। मथुरा से भागे हुए गुसाईयों को हमने शरण दी है। अब जो हम बादशाह की बेगम को हरण करेंगे तो निश्चय ही उसका हम पर पूरा कोप होगा, और वह दल-बल सहित हम पर चढ़ दौड़ेगा। तब क्या हम उसका मुकाबिला कर सकेंगे। मुझे तो ऐसा दीखता है कि शाही सेना क्षण भर में सारे मेवाड़ को आनन-फानन तबाह कर देगी। हमारे गाँव लूटे और जला दिये जावेंगे। स्त्रियों को बे-आबरू किया जावेगा। लहलहाती फस्लें नष्ट कर दी जावेंगी और मेवाड़ की वीर भूमि अपने वीरों के