पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१३९

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१२४ राजसिंह [आठवाँ विक्रम-अपने प्राण तो दे सकेंगे। दुर्जन-तुमने क्या सोचा है ? सुना है, शाही सेना आजकल में आ पहुंचेगी। विक्रम- हमने गुप्त रूप से वीरों का संगठन किया है। दो हजार राजपूत मरने मारने को तैयार हैं। दुर्जन-वे क्या बादशाह की ५० हजार सेना से मुकाबिला कर सकेंगे। विक्रम-(कान में कुछ कहकर ) समझे। हमें क्षण-क्षण पर आशा है। दुर्जन- (आश्चर्य से ) क्या सच ? विक्रम-(धीरे से) अनन्तमिश्र को गये आज सातवाँ दिन है। दुर्जन-तब तो आशा होती है। विक्रम-चलो फिर, उसी भग्न मन्दिर में गुप्तमन्त्रणा होगी। सब लोग पहुंच गये होंगे। दुर्जन-चलो । (चौंककर ) हैं, मन्दिर के चबूतरे पर ये यवन सैनिक कौन है ? विक्रम-क्या शाही सेना आ पहुंची? दुर्जन-दुष्ट, स्त्रियों को घूर रहे हैं। विक्रम-उनका अपमान कर रहे हैं। (दोनों आगे बढ़ते हैं) विक्रम-(सैनिकों से) कौन हो तुम ? एक सैनिक- (दता से)इतना भी नहीं देख सकते, इन्सान हैं।